कुछ कही थोड़ी अनकही
मैं स्थावर
कुछ न घटित होने से भी कुछ
जहाँ थोड़ा सम्भलता लड़खड़ाकर भी
थोड़ा सिमटता, सिकुड़ता
फिर कभी खड़े होने के लिए
मैं एक स्थावर पेंड
नदी का बहना, जीवन का बहना
एक समान
मैं जीवन की बहती नदी के
किनारे खड़ा एक पेड़ जिसके
नदी कभी इस ओर बहती कही उस...
किन्चित ठहराव, रेत का छाड़न भी
और तब एक आशा, उम्मीद बहती
पुनः किसी छोर से बहने की
बस धार बदलती नदी की
और इस तरह बदलते मेरे किनारे भी
कभी एक ओर कभी दूसरी.....
मेरे तन पर पड़े
समय के सबसे क्रूर पंजों के निशान
हवा चलती और मिटाने की हर कोशिश
पर हर कोशिशों के बाद, एक नया निशान
छोड़ जाती
मैं जड़ और उम्मीदें चेतन
जो नदी की दिशा के विपरीत बहती
इन बहती इच्छाओं में से कुछ इच्छाएं रख पाता
पुनः कुछ करने के लिए
जिसमें थोड़ा कुछ कह लेता
और थोड़ा बचाकर रख लेता
फिर कभी कुछ कहने के लिये
27 मार्च 2018
उम्मीदें
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