यात्रा -एक कविता की
जन्म लेना कविताओं का,
एक यात्रा ही मात्र है।
जब जब;
कीचड़ से सने,
धूल से भरे,
छालों भरे पाँव लिए…।
जब,
स्वेद से सराबोर तन,
धूप से जले चेहरे…।
और भी,
बारिशों से भीगे कुर्ते में की गई यात्राएँ… ।
कितनी सरल होती हैं न,
उतनी ही भोली होती हैं न,
देशज शब्दों की चादर ओढ़ी ये कविताएँ ,
ये आपसे,
जूते ,
रंगीन छतरीयाँ ,
या रेनकोट नहीं माँगती….।
तभी तो,
जिस सुंदरता को रचने में,
ईश्वर असमर्थ होता है,
उसे कवियों के भरोसे,
छोड़ देता है।
जब रिश्ता बनता है,
इन कविताओं से तो,
ये हँसीं माँगती है,
आँसू माँगती है
कविताएँ,फिर इसके शब्द;
एक तेज धारदार शस्त्र है;
जिसके वार;
आत्मा छीलते हैं…।
अनंत रेगिस्तान है;
मैं अकेला चल रहा हूँ;
मेरे पास भी बादल नहीं…।
झिलमिलाती साया सा;
शनैःशनैः डोलता;
दूर जो एक पेड़ खड़ा;
मेरा मंजिल वही है;
लेकिन,
पेड़ में आत्मा नहीं…।
हाँ,
मैं अकेला था;
हाँ,
मैं सुकून से रो पाया…।
जब,
एक रोज दुनिया में;
सदा के लिए रात हो गई;
किसी के पास जुगनू थे;
किसी के पास उम्मीद।
पर,
मेरे पास कविता थी…;
और साथ ही,
मेरी आत्मा के दाएँ हिस्से में है;
वह एकाकीपन;
जो मुझे कभी अकेले नहीं छोड़ता।
जबकि
मेरी आत्मा में बायाँ हिस्सा नहीं है।।
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