शोर की परछाईं
मेरे शब्द-मञ्जूषा में
वंशी की धुन नहीं
होती है भीड़ की चीत्कार
शोर भरा हुजुम
हर पल, हर क्षण
त्वरित होता
गाँव में खेतों की
मेढ़ों से लेकर
शहर की
फुटपाथों तक
मेरे शब्द-मञ्जूषा से
एक रेखाचित्र उभरता
काँपती, तरल, बुझती लौ
जो एक भोक्ता की
जन की परछाईं है वह
किस शोर की परछाईं वह?
21 मार्च 2018
जन शोर की परछाईं
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